Diya Jethwani

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वफ़ा ना रास आईं..... 💔 (12)

मम्मी.... मेरा नाश्ता..... मैंने रखा था.... कढ़ाई में....!! 

अरे हां वो छोटे के लिए टिफिन में पैक कर दिया हैं..... उसने बोला मुझे ये ही देना.....। 


ओहहह...... ठीक है.... कोई बात नहीं...। 


तु एक काम करना...... खाने की तैयारी कर ले..... खाना बना दे... फिर सीधा खाना खा लेना......। फ्रिज में गोभी रखी हैं वो बना ले....। 


गोभी.....!! ओर कोई सब्जी नहीं हैं क्या मम्मी..... तुझे तो पता हैं मुझे गोभी से एलर्जी हैं....। 


कभी कभी चला लेना चाहिए..... यहाँ तेरे ससुराल की तरह लाखों रुपया नहीं रखा हैं...... तुझे तो बस बहाने चाहिए... मर नहीं जाएगी कभी खा लेगी तो.... ओर नहीं खानी हैं तो जा जाकर ले आ बाहर से.... हमारे पास तेरे नखरे उठाने के लिए पैसे नहीं हैं.....। तेरी शादी के चक्कर में... दहेज़ के चक्कर में हम उस बड़े से महल से इस झोपड़े में तो आ गए हैं.... अब क्या हम सड़कों पर चले जाए....!! 



मेरी..... वजह से...... मम्मी..... वो घर कर्जे में...... 


तु तो चुप ही रह.....। तुझे यहाँ बुलाया हैं क्योंकि समाज बोल बोल कर रहा था... वरना मैं तो तेरी शक्ल भी देखना नहीं चाहती थीं..... पता नहीं ये चार दिन कैसे कटेंगे.....।


वो तो मैं सवेरे ही समझ चुकी थीं मम्मी..... घर आतें ही आपके बोले झूठ.... पापा का मिले बिना चले जाना.... भाइयों का ऐसा रवैया....। पर आप चिंता ना करो मम्मी..... मैं आज ही वापस चली जाऊंगी.....। 


हां..... करवा ले हमारी ओर बेइज्जती.... वहीं तो आता हैं तुझे...। 



मम्मी की ये सारी बातें सुन मेरी आंखों से आंसू छलकने लगे....। मैं बिना कुछ बोले रसोई से बाहर चली गयीं.....। बाहर बैठे बैठे मेरी आंखों के सामने शादी से पहले की सारी बातें घुमने लगी..... पापा की जूए की आदत, मम्मी की बिमारी,दीदी की शादी में किया गया खर्चा.... मेरा रात रात भर जागकर सिलाई करना, ट्यूशन पढ़ाना, घर संभालना, मम्मी को संभालना...... इन सबके बावजूद इस हालत का जिम्मेदार मुझे ठहराना....। ऐसा नहीं था की मम्मी ने पहली बार मुझसे ऐसे बात की थी..... पर विवाह के बाद पहली बार बेटी के आने पर उसकी कितनी आवभगत होतीं हैं ......वो मैं मेरी ननद और मेरी बहन के आने पर देख चुकी थीं.....। मैं इतना तो सोचकर भी नहीं आई थीं पर सिर्फ एक प्यारी सी झप्पी की तो मैं भी हकदार थीं....। भाइयों से मुस्कुराकर मिलने ओर बड़ी बहन का सम्मान मिलने की तो हकदार थीं.....। पर यहाँ तो........ ।


मैं रोते रोते ही वापस रसोईघर में  गयीं और खाना बनाने में लग गयीं....। कुछ देर में पतिदेव ओर भाई भी आ गए....। भाई तैयार होकर काम पर चले गए और मम्मी और पतिदेव जी बातचीत में लगे रहे....। खाने का वक्त हुआ.... मैंने उन दोनों को खाना दिया.... लेकिन सच कहूं तो मेरी भूख मर चुकी थीं....। मैंने कुछ नहीं खाया ओर ससुराल से भेजा गया सारा सामान मम्मी को देकर मैं दूसरे कमरे में सोने चली गयी.....। रोते रोते ना जाने कब मुझे आंख लग गयीं....। शाम के छह बजे मम्मी हररोज की तरह सतसंग में चली गई....। मैं उठ कर किचन में गयीं..... अब भूख..... तकलीफ से ज्यादा हावी हो रही थी.... इसलिए खाना लेने आई.... सोचा चाय के साथ रोटी खा लूंगी.... पर बक्से में एक भी रोटी नहीं थीं.....जबकि मैंने तीन रोटी अंत में रखी थी......। सब समझ के बाहर था..... इसलिए सिर्फ चाय बनाकर पतिदेव के साथ चाय पीने लगी...। ना जाने आज मुझमें कैसे हिम्मत आई ओर मैंने चाय पीते पीते पतिदेव से कहा :- एक बात कहूँ..... हम वहां से तो कभी बाहर जा नहीं सकते..... यहाँ से चले कहीं ओर.....!! 


मतलब.....! 


कहीं ओर घुमकर आते हैं.... यहाँ चार दिन मेरा तो ठीक हैं..... आप बोर हो जाएंगे....। 


वो तो कुछ घंटों में ही हो गया हूँ.....। पर चलना कहाँ हैं.... ! 


यहाँ थोड़ी दूरी पर कुछ मंदिर और झीले वगैरह हैं.... कुछ दिन तो.... 


ठीक हैं..... तेरे भाई आएं..... उनसे भी पूछ ले..... चले तो... वापसी में तो यहीं आना पड़ेगा..... ट्रेन यहीं से हैं....। 



पतिदेव की जुबान से ये सुन मेरी सारी भुख, सारी तकलीफ सारे आंसू उड़न छू हो गयें थे.....। घुमने से ज्यादा मुझे इस बात की खुशी थीं की मम्मी को मेरी शक्ल देखकर होने वाली तकलीफ से छूटकारा मिलने वाला था.. । वो चाहे मेरे बारे में कुछ भी सोचती हो.... पर मैं उनको अपनी तरफ़ से थोड़ी सी भी तकलीफ नही देना चाहतीं थीं..... ओर ना ही उनको तकलीफ में देख सकतीं थीं....। 



घंटे भर बाद ही मम्मी आई....। इन्होंने मम्मी से बात निकाली...। मम्मी के चेहरे पर भी कुछ सुकून तो आया ये सुनकर..... । 


रात को भाई भी आए...... उनसे पूछा पर दोनों ने मेरी उम्मीद के मुताबिक मना कर दिया.....। पूरे चौबीस घंटों बाद मैंने सुकून से खाना खाया....। क्योंकि हमें सवेरे जल्दी ही निकलना था...। अपने साथ ले जाने वाला सामान मैंने खाना खाकर पैक कर दिया था...। इस पूरे दिन में अफसोस सिर्फ इस बात का था की मैं अभी तक पापा से नहीं मिली थी.... या फिर यूं कहें वो मुझसे मिलना नहीं चाहते थे....। 

मकान के बिकने ओर इस छोटे मकान में... तंगहाली में रहने का जिम्मेदार सभी मुझे समझते थे.....। ओर ये सारी बातें सभी के दिमाग में फिट करने वाली...... मेरी बड़ी बहन थीं....। मम्मी ओर भाइयों के बीच हुई बात से मैं ये सब अच्छे से समझ चुकी थीं....। एक आस की शायद वापसी में मैं पापा से मिल सकूँ के साथ में अगले दिन सवेरे वहां से निकल गयीं.....। 


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3 Comments

Mohammed urooj khan

20-Apr-2024 12:36 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Arti khamborkar

20-Apr-2024 08:48 AM

V nice

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Gunjan Kamal

19-Apr-2024 10:11 PM

👌🏻👏🏻

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